जय महाकाल,
शिवार्चानम महिमा….!
“किम किम न सम्भ्वेदात्र शिव लिंग समर्च्नात ,
कलों लिंगार्चानम श्रेष्ठं यथा लोके प्रद्श्यते ,
तथा नस्तिही-नास्तीति शास्त्रानाम मेष निर्णयः:”
-इस कलियुग में शिव लिंग पूजन -अर्चन से श्रेष्ठ क्या हो सकता है…जब सारी सम्भावनाये एक ही मूल में जा ठहरती हों,अतः: शास्त्रों का निर्णय यही है.
“स ब्रह्मा स विष्णु स रुद्रासशिवसोअक्षरस्य यमः: स्वारातम, “
-केवाल्योप्निषद में शिव को सच्छिदानन्द परमब्रहम स्वरुप कहा है,
“सर्व देवात्मको रुद्रः ,सर्वे देवा: शिवात्मका:”
-अर्थात सभी देवता शिव है एवं शिव ही सभी देवताओं का स्वरुप है.
-रिग्वेदा के -रूद्र:, यजुर्वेद के -शिव , अथर्ववेद के -महादेव ,संवेदा के -रूद्र ,गीता में कहे गए शंकर, शिव पूरण के-आशुतोष शिव शंकर एक ही हैं.
पार्थिव- मिटटी के बने शिव से लेकर ह्रदय कमल की तीसरी कर्णिका में विराजमान शिव वे ही हैं!
जहा म्रत्यु भय का भान तक समाप्त हो जाता है….”सेते प्राणिनो यत्र स शिव: ” परम विश्राम हैं , परम आश्रय हैं,, शिव परम शांति कारक हैं…..!
शिव स्तुति के लिए भगवती श्रुति ….तस्मै तस्मै नमो नमः: से शिव तत्वा का दर्शन ह्रदय में मन में करने का संकल्प करती है….!
यजुर्वेदीय प्रार्थना ….”यज्जाग्रतो दूरमुदैती देवं तदुसुप्तस्य तथैवेति दूरंगामज्योतीखाम ज्योतिरेकं तन्मे मनः: शिवसंकल्पमस्तु !
अर्थात हे दूर जाते मन …लोट के आ एवं शिव संकल्प …अर्चन में लग जा ऐसा सर्व प्रथम विशेष स्वर-ध्वनियो में गुथे मंत्रो से भूत भावन का पूजन/ अभिषेक प्रारंभ किया जाता है. !
शिव पूजन/अर्चन /अभिषेक के प्रकार साधारण से लेकर विशेष तक हैं, जिस प्रकार शिव पार्थिव-मिटटी के शिव ले लेकर ह्रदय ,मन से लेकर विशाल पर्वतो,सागर एवं अंतरिक्ष में समाये हुये हैं.
पांच-तत्वों जल, अग्नि,स्थल (पृथ्वी ) ,वायु आकाश सभी के मिश्रण से शिव का पूजन/अर्चन समाया है..!
१- अभिषेक-जल तत्वा , २- दर्शन -आकाश तत्वा , ३ स्मरण -वायु तत्वा, ४- निर्माण एवं विसर्जन रूप पूजन-( मृत्तिका स्वरुप ) पृथ्वी तत्वा , ५-होम हवन -अग्नि तत्वा .
सभी पूजा विधान भूत भावन भगवान शिव शंकर को स्वीकार्य हैं !
जय शिव